यह ठीक ही तो है कि हम सब चाहते है कि हम जीवन में जो कुछ भी करें उसमें हमें सफलता मिले और फिर जीवन के सारे उद्यम सुख, शांति और समृद्धि के लिए ही तो होते है. दूसरी तरफ यह भी सही है कि हम में से अधिकांश लोग अपने-अपने जीवन से संतुष्ट नहीं है. इनके पास हमेशा एक सूची तैयार रहती है जिन्हें हासिल किए बिना इन्हें अपना जीवन अधूरा लगता है.
कहाँ तो हम अपने जीवन पर भौतिक सुख-सुविधाओं का श्रृंगार करने निकले थे और कहाँ हम अपने जीवन को ही अधूरा मानने लगे. हमें क्यों मनचाही सफलता नहीं मिलती? जीवन में इतना सब कुछ हासिल कर लेने के बाद भी मन में संतुष्टि का भाव क्यों नहीं है?
सच तो यह है कि हम जीवन के इतने अभ्यस्त हो जाते है कि प्रकृति और परमात्मा की नेमतों को भूलने लगते है. हमें इनकी आदत-सी हो जाती है. आप ही बताइए हमारा होना ही क्या किसी चमत्कार से कम है?, लेकिन हमारा सारा ध्यान जीवन में जो कुछ भी करना और पाना चाहते है, पर ही लगा रहता है. धीरे-धीरे हमारी सोच इतनी केन्द्रित हो जाती है कि कल तक जो हमारे लिए प्रेरणा थी वे ही बातें अभावों का अहसास कराने लगती है. हम सोचने लगते लगते है कि जीवन में वो सब कुह नहीं मिला जो मुझे मिलना चाहिए था. हम दरिद्र सोच के साथ जीने लगते है और सफलता-समृद्धि हमसे और दूर होती चली जाती है. किसी ने ठीक ही कहा है, ' जैसी दृष्टी, वैसी सृष्टि.'
प्रकृति का एक सीधा-सरल लेकिन आधारभूत नियम है. ' आप विश्वास के साथ जैसा सोचते है वैसा ही होता है; आप चाहे चाहें, चाहे न चाहें.' दरिद्र सोच के साथ समृद्धि कैसे आएगी? ये वैसी ही बात है कि हम जाना तो चाहें पूर्व में और रास्ता पूछें पश्चिम का.
सराहना का भाव ही है जो हमारी सोच कि दरिद्रता को मिटाएगा. क्षण भर के लिए रुकिए और अपने चारों ओर नज़र घूमाइए. आपके लिए प्रकृति और परमात्मा की नेमतों को गिन पाना भी मुश्किल हो जायेगा. यह अहसास भर आपको कृतज्ञता के भाव से भर देगा और आपकी सोच समृद्धि के विचारों से उन्नत हो उठेगी. समृद्धि के विचार ही आपके जीवन में समृद्धि लाएगें. सराहिये उन व्यक्तियों को भी जिनके कारण आपका जीवन इतना सुंदर बन पड़ा. सराहना का मतलब ही है धन्यवाद की भावना के साथ व्यक्ति को उसकी अच्छाईयों के बारे में बताना. उसे उसी के ईश्वरीय गुणों से अवगत करना.
आशीर्वाद और प्रार्थना भी सराहना के ही रूप है. आशीर्वाद यानि किसी व्यक्ति की कुछ कर गुजरने की क्षमता को स्वीकार करते हए उसे इसके लिए प्रेरित करना, भरोसा दिलाना. प्रार्थना यानि प्रकृति और परमात्मा के गुणों का बखान कर अपने आपको याद दिलाना कि में भी उन गुणों का ही अंश हूँ अतः असंभव मेरे लिए भी कुछ नहीं. ये तीनों ही हमें हर क्षण याद दिलाते है कि समृद्धि हमारा अधिकार है.
वास्तव में सराहना, प्रार्थना और आशीर्वाद अलग-अलग तरीकों से हमें उस शक्ति से जोड़ते है जिससे यह सृष्टि चलायमान है और फिर हमारे लिए कुछ भी असंभव नहीं रह जाता.
आपको जीवन में जो कुछ प्रकृति और परमात्मा से मिला है उसे सराहिए, अपने कर्म और व्यवहार से आशीर्वाद कि पूँजी बढाइए औए अपना दृष्टिकोण प्रार्थनामय रखिए; संतुष्टि और समृद्धि दोनों आपके बगल में होगी.
( रविवार, १५ जुलाई को ' प्रार्थनामय रखिए दृष्टिकोण ' शीर्षक के साथ नवज्योति में प्रकाशित )
आपका.
राहुल.....
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