हरदम , जब कभी ; बस निकल लें,
थोडा - सा आराम करें
और तब
जब आप लौटेंगे काम पर
आपके निर्णय होंगे ज्यादा पक्के
बिना विश्राम कैसे रहेगा
आपके निर्णयों में पैनापन
थोडा दूर निकल जाएँ
काम दिखेगा छोटा-सा
और उससे भी ज्यादा
दिखेगा पूरा का पूरा
और तब
चल जाएगा तुरंत मालूम
कहाँ अनुपात गड़बड़ा रहा है
कहाँ लय टूट रही है
-लेओनार्दो दी विन्ची
लेओनार्दो दी विन्ची; महानतम चित्रकार, पुनर्जागरण के प्रणेताओं में से एक और सबसे अहम् इतिहासकारों द्वारा ठहराए गए आज तक के सबसे बड़े जिज्ञासु.
ऐसे व्यक्ति जिनकी खोजबीन से जिन्दगी का कोई कोना छूटा हो ऐसा नहीं लगता. जिन्होने पहली विमान-उड़ान के 400 वर्ष पहले इसकी संभावनाओं को तलाशा. उनके जीवन को देखकर तो ऐसा लगता है की कोई व्यक्ति एक ही जीवन में इतना कुछ कैसे कर सकता है.
जब ऐसा व्यक्ति हमें रुकने की, सुस्ताने की सलाह देता है तो निश्चित रूप से इसका महत्व तो है.
वे हमें इस सुंदर कविता के द्वारा यह कहना चाहते है की रोजमर्रा की जिन्दगी जीते जीते हमारी रचनात्मकता क्षीण होने लगती है. हम अपने काम को करते-करते काम में कम और समय सीमाओं में ज्यादा उलझ कर रह जाते है. कितने बजे उठना है, कितने बजे काम पर जाना है, कितने बजे खाना खाना है और कितने बजे सोना है, इत्यादि.
वहीँ रचनात्मकता तो मन की उपज होती है और मन को समय की समझ नहीं होती. हम मन के क्रिया- कलापों को घडी से बाँधने लगते है. यह भी ठीक है कि समय में उलझ जाना सामान्यतया हमारी मज़बूरी होती है क्योंकि हमारा दिन एक के बाद एक दायित्वों से बंधा होता है. समय कि इन सीमाओं को निबाहते निबाहते हम अनजाने ही यह भूलने लगते है कि किसी काम को करने या न करने का चुनाव हमारा नैसर्गिक अधिकार है और हमारी अभिव्यक्ति का मूल. अवकाश हमारे मन को समय के बंधनों से मुक्त कर हमारे निर्णयों को पक्का करता है और हमारी रचनात्मकता लौटता है.
एक और पहलू जो हमारी रचनात्मकता को धुंधली करने लगता है वह है सांसारिक नकारात्मकता. हमारा काम कभी एक पक्षीय नहीं होता और जिन्हें ये प्रभावित करता है वे हमें नियंत्रित करने कि कोशिश करने लगते है. ऐसा हम भी करते है और वे भी. हम सभी यह कोशिश करने करने लगते है है कि हर व्यक्ति अपना काम हमारे तरीके से करें. यह रस्साकशी अहम् के हाथों में चली जाती है और हमारा काम जो प्रेम कि अभिव्यक्ति होना चाहिए अहम् कि लड़ाई का मैदान हो जाता है. इस सारी उठापटक में हमारा मन खंडित होने लगता है. मन कि दीवारों पर तरेड़ें (cracks) आने लगती हैं.
अवकाश मन कि मरम्मत करने का समय होता है. उसे ताज़ा और सुंदर बनाने के लिए होता है. अंग्रेजी का शब्द (Re - create) बिलकुल सार्थक है. अवकाश मन को पुनः सर्जित करता है. इस समय हम अपने काम को निर्र्विकारभाव के साथ समग्रता से देख पाते है और तब ही जान पाते है कि काम के किस भाग को हम जरुरत से अधिक या कम महत्व दे रहे है और कहाँ हमारे जीवन कि लयात्मकता (Rhythm) टूट रही है.
हमारा काम हमारा परिचय बनें, इन्ही शुभकामनाओं के साथ;
आपका
राहुल.....
ऐसे व्यक्ति जिनकी खोजबीन से जिन्दगी का कोई कोना छूटा हो ऐसा नहीं लगता. जिन्होने पहली विमान-उड़ान के 400 वर्ष पहले इसकी संभावनाओं को तलाशा. उनके जीवन को देखकर तो ऐसा लगता है की कोई व्यक्ति एक ही जीवन में इतना कुछ कैसे कर सकता है.
जब ऐसा व्यक्ति हमें रुकने की, सुस्ताने की सलाह देता है तो निश्चित रूप से इसका महत्व तो है.
वे हमें इस सुंदर कविता के द्वारा यह कहना चाहते है की रोजमर्रा की जिन्दगी जीते जीते हमारी रचनात्मकता क्षीण होने लगती है. हम अपने काम को करते-करते काम में कम और समय सीमाओं में ज्यादा उलझ कर रह जाते है. कितने बजे उठना है, कितने बजे काम पर जाना है, कितने बजे खाना खाना है और कितने बजे सोना है, इत्यादि.
वहीँ रचनात्मकता तो मन की उपज होती है और मन को समय की समझ नहीं होती. हम मन के क्रिया- कलापों को घडी से बाँधने लगते है. यह भी ठीक है कि समय में उलझ जाना सामान्यतया हमारी मज़बूरी होती है क्योंकि हमारा दिन एक के बाद एक दायित्वों से बंधा होता है. समय कि इन सीमाओं को निबाहते निबाहते हम अनजाने ही यह भूलने लगते है कि किसी काम को करने या न करने का चुनाव हमारा नैसर्गिक अधिकार है और हमारी अभिव्यक्ति का मूल. अवकाश हमारे मन को समय के बंधनों से मुक्त कर हमारे निर्णयों को पक्का करता है और हमारी रचनात्मकता लौटता है.
एक और पहलू जो हमारी रचनात्मकता को धुंधली करने लगता है वह है सांसारिक नकारात्मकता. हमारा काम कभी एक पक्षीय नहीं होता और जिन्हें ये प्रभावित करता है वे हमें नियंत्रित करने कि कोशिश करने लगते है. ऐसा हम भी करते है और वे भी. हम सभी यह कोशिश करने करने लगते है है कि हर व्यक्ति अपना काम हमारे तरीके से करें. यह रस्साकशी अहम् के हाथों में चली जाती है और हमारा काम जो प्रेम कि अभिव्यक्ति होना चाहिए अहम् कि लड़ाई का मैदान हो जाता है. इस सारी उठापटक में हमारा मन खंडित होने लगता है. मन कि दीवारों पर तरेड़ें (cracks) आने लगती हैं.
अवकाश मन कि मरम्मत करने का समय होता है. उसे ताज़ा और सुंदर बनाने के लिए होता है. अंग्रेजी का शब्द (Re - create) बिलकुल सार्थक है. अवकाश मन को पुनः सर्जित करता है. इस समय हम अपने काम को निर्र्विकारभाव के साथ समग्रता से देख पाते है और तब ही जान पाते है कि काम के किस भाग को हम जरुरत से अधिक या कम महत्व दे रहे है और कहाँ हमारे जीवन कि लयात्मकता (Rhythm) टूट रही है.
हमारा काम हमारा परिचय बनें, इन्ही शुभकामनाओं के साथ;
आपका
राहुल.....
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