बात ही कुछ ऐसी थी, मैंने अपने मित्र के साथ कोई काम शुरू किया था और आज बातचीत आपसी लेन-देन पर होनी थी। एक जगह आकर उसने कहा, देख लेना यार, इसे और सोचना 'स्ट्रेस' पैदा कर रहा है इसलिए मैं आगे नहीं सोच रहा। बात यहीं खत्म हो गई और हमने एक-दूसरे से विदा भी ले ली पर मैं मन ही मन अभी भी उसे देख रहा था, सुन रहा था। बहुत कम बार होता है जब मैं किसी को अपने सहज होने को लेकर इतना सजग, इतना गम्भीर पाता हूँ। हम तो ये ख्याल ही नहीं रख पाते कि निर्णय न लेना भी एक विकल्प होता है। इसके लिए हम नहीं वो घुट्टी दोषी होती है जिससे हम समझ आने के पहले दिन से सीख जाते हैं कि जीवन में अवसर बार-बार नहीं आते, पर कभी न कभी आते जरूर हैं इसलिए सफल होना हो तो हर क्षण ताक में रहना चाहिए और जैसे ही आये उन्हें झपट लेना चाहिए।
हम इसे यूँ कभी देख ही नहीं पाते कि जिन्दगी का तो हर क्षण दो राहा होता है,- ये करें या वो, और हर बार हम उसमें से एक को चुनते हैं। यानि जिन्दगी का हर क्षण एक अवसर है, सहजता और तनाव में से किसी एक को चुनने का।
क्योंकि आखिरकार ये जिन्दगी है, कोई चूहे-बिल्ली का खेल नहीं।
हमारी संवेदनाएँ मन से आए संकेत होती हैं यानि तनाव होना ही नकारात्मक संकेत है, इस बात का कि या तो आप सही दिशा में नहीं या अभी सही समय नहीं और ऐसी स्थिति में कुछ तय नहीं करना ही ज्यादा ठीक। तो बेहतर है, यदि रिश्ते विश्वास के हों तो अगले पर छोड़ दें नहीं तो प्रकृति पर। प्रकृति के पास अनगिनत तरीके हैं सही समय पर आपको सही जवाब देने के। वैसे भी, हर बात के होने का एक समय होता है, वो न तो उसके पहले होनी चाहिए और न ही उसके बाद, ठीक एक बच्चे के जन्म की तरह। कई बार हम जरूर अपनी इच्छाओं के चलते कुछ जल्दबाजी मचाने लगते हैं, पर ऐसे करने से होता कुछ नहीं अलबत्ता बात बिगड़ती ही है। आप क्या आप से बात करते-करते, मैं भी सोचने लगा हूँ कि जिन्दगी हमेशा इतनी आसान तो नहीं होती कि आप इतना सीधा-सीधा सोच पाओ। कई मौके ऐसे होते हैं जब हमें कुछ न कुछ निर्णय लेने ही होते हैं, उनका समय आ चुका होता है चाहे वे कितने ही तनाव भरे क्यूँ न हों। पर जब बहुत सोचा तो पाया, सच में वे निर्णय तनाव भरे नहीं होते। हमें हर बार मालूम होता है कि हमें करना क्या चाहिए। हाँ, कई बार हमें करना वो होता है जो हम करना नहीं चाहते। उन निर्णयों के परिणाम हमें पसन्द नहीं होते और तब हम हर सम्भव कोशिश में जुटे होते हैं कि वे किसी तरह टल जाएँ। पर ऐसा हो नहीं पाता क्योंकि जीवन प्रकृति से बँधा है और प्रकृति नियमों से।
तो जो मैं समझा,
वो ये कि यदि आप सहज हैं तो सही हैं, और यदि ऐसा नहीं तो कहीं न कहीं गड़बड़ तो है।
ऐसा है तो रुकिए, टटोलिये और तब आगे बढिए, यही एकमात्र रास्ता है।
और ऐसे निर्णय जिन्हें लेना तनाव से भरता हो, उन्हें लेने में उनके परिणामों की बजाय अपनी सहजता को प्राथमिकता दें। यदि ऐसा किया तो धीरे-धीरे ही सही हम उस दिशा में बढ़ते चले जाएँगे जहाँ से परिणाम हमारे पक्ष में आने शुरू होंगे, और यही तो हम चाहते हैं।