एक व्यक्ति अपने जीवन में जहाँ कहीं है वह अपने विचारों की बदौलत है और ये विचार, ये बनते हैं हमारे देखने-सुनने से। जैसा हम देखते-सुनते है वैसे ही विचार हमारे मन में बनने लगते है और फिर धीरे-धीरे उन पर यकीं होने लगता है। जिन विचारों पर हम यकीं करने लगते वे ज्यों के त्यों हमारे जीवन में घटने लगते है चाहे हम चाहें या न चाहें।
कितना महत्वपूर्ण होता है हमारा देखना और सुनना, इस बात का और भी शिद्दत से अहसास हुआ जब मैंने डॉ. सुमोटो का चावल पर किए प्रयोग का वीडियो देखा। तब मैंने अपने चारों ओर नजर घुमाई तो पाया कि हम शायद ही ऐसा कुछ देख-सुन रहे हैं जो मन को सुकून पहुँचाने वाला हो। अब भला रोज ही झूठ-बेईमानी की कहानियों से घिरे रहेंगे तो अछाई पर यकीं भला क्यों कर होने लगा? हम इन लोगों को सफल मानने लगते है पर ऐसा है नहीं। हासिल इन्होंने चाहे जो कर लिया हो ये खुश नहीं हो सकते वैसे ही जैसे नमक डालने से हलवा कभी मीठा नहीं हो सकता।
हमारे मन की बदहाली की वजह हमारे अपने विचार है जो हमने अविश्वास के बीजों को बोकर पाए हैं। मैंने सोचा क्यों न मैं रोजाना किसी ऐसी सच्ची घटना को आपके साथ साझा करूँ जी मन में विश्वास जगाती हो, कम शब्दों में उस लिंक के साथ जहाँ से मैंने उसे उठाया हो पर विश्वास बड़ा जगाती हो। विश्वास इस बात का कि अन्ततः अच्छा सिर्फ उनके साथ है अच्छाई को चुनते है। तब हमारे होने या न होने से फर्क पड़ने लगता है।
तो आइए, facebook.com/dilsebyrahul पर, वहीं खुशियों की फसल के लिए विश्वास के बीज बोते हैं।
(डॉ सुमोटो का वीडियो भी आप आज की पोस्ट में देख सकते हैं)
इंतजार में,
राहुल हेमराज ........